New Delhi : खत्म होंगे अंग्रेजों के जमाने के कानून! केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह बड़े बदलाव वाले बिल पेश किये , मॉनसून सत्र के आखिरी दिन लोकसभा में, अमित शाह ने एक साथ तीन विधेयक पेश किया सरकार इन विधेयकों द्वारा भारतीय न्याय संहिता, भारतीय साक्ष्य विधेयक और भारतीय नागरिक सुरक्षा में सुधार की उम्मीद कर रही है… ऐसे में चलिए विस्तार से समझें इन बदलाव के बिल को, साथ ही जानें आखिर क्या है इसके पीछे सरकार की असल मंशा…
विधेयक की पेशकश करते हुए, गृह मंत्री अमित शाह ने लंबा भाषण दिया
लोकसभा में विधेयक की पेशकश करते हुए, गृह मंत्री अमित शाह ने लंबा भाषण दिया. उन्होंने इन विधेयक को आज की जरूरत बताते हुए कई महत्वपूर्ण घटनाओं का जिक्र भी किया. इस दौरान अमित शाह ने देश की फिलहाल की आपराधिक न्याय प्रणाली को अंग्रेजों के जमाने का बताया, साथ ही इनमें बड़े बदलाव के संकेत देते हए आज के मुताल्लिक़ न्याय प्रणाली में बदलाव की जरूरत का जिक्र किया. इसी के तहत शाह ने तीनों कानून (इंडियन पीनल कोड, क्रिमिनल प्रोसीजर कोड, इंडियन एविडेंस कोड) में सुधार के लिए विधयकों की पेशकश भी की. अब चलिए शाह द्वारा पेश इन विधेयकों के बाद क्या कुछ तबदीली पेश आएगी, वो समझते हैं…
मॉब लिंचिंग-नाबालिग से रेप पर अब मौत की सजा…
लोकसभा में शाह द्वारा पेश नए विधेयक में नाबालिग से रेप और मॉब लिंचिंग जैसे गंभीर अपराधों पर सजा-ए-मौत मुकर्रर की गई है. दरअसल इन नए विधेयक में मॉब लिंचिंग को जहां हत्या की परिभाषा से जोड़ा गया है, वहीं नाबालिग से रेप को गंभीर से गंभीर आरोप की क्षेणी में रखते हुए मौत की सजा का प्रावधान किया गया है. मॉब लिंचिंग पर इस पेश विधेयक में स्पष्ट किया गया है कि, जब 5 या 5 से ज्यादा लोगों का एक समूह एकजुट होकर लिंग, जन्म स्थान, भाषा, नस्ल, जाति, समुदाय, व्यक्तिगत विश्वास या किसी अन्य आधार पर हत्या करता है, तो ऐसे समूह को न्यूनतम 7 साल की सजा और अधिकतम मृत्युदंड दिया जा सकता है.
वहीं महिलाओं के प्रति बढ़ रहे अपराध और तमाम तरहों की सामाजिक समस्याओं में बेहतरी के लिए ये विधेयक बेहद ही कारगर है. इसी लिहाज से इस विधेयक में नाबालिग से रेप के मामले को गंभीर से गंभीर अपराध की क्षेणी में रखते हुए मृत्यु का प्रावधान तय किया गया है. वहीं इसके साथ ही गैंग रेप के सभी मामलों में 20 साल की सजा या आजीवन कारावास का प्रावधान किया गया है.
आरोपी की गैरमौजूदगी में ट्रायल और सजा
लोकसभा में इस नए विधेयक को पेश करते हुए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने एक ऐतिहासिक फैसले का जिक्र किया है. अब आरोपी की गैरमौजूदगी से मामले में चल रहे ट्रायल और सजा पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा. अब सेशन कोर्ट द्वारा घोषित भगोड़ों की अनुपस्थिति में भी ट्रायल और सजा पर सुनवाई होगी.
हेट स्पीच पर भी मिलेगा दंड
नए विधेयक के तहत अब किसी भी तरह की हेट स्पीच को भी अपराध माना जाएगा. भड़काऊ भाषण देने वाले अपराधी को तीन साल की सजा या जुर्माना या फिर दोनों का प्रावधान किया गया है. इसके अतिरिक्त किसी भी धार्मिक आयोजन में अगर कोई किसी वर्ग, श्रेणी या अन्य धर्म के खिलाफ हेट स्पीच का उपयोग करता है, तो 5 साल तक की सजा हो सकती है.
और भी कई बड़े बदलाव…
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने बड़े बदलाव का बिल लोकसभा में पेश करते हुए, और भी कई बड़े बदलाव का जिक्र किया है. इनमें ऑनलाइन कोर्ट्स, जीरो एफआईआर रजिस्ट्रेशन, गिरफ्तारी पर आरोपी के परिवार को इत्तला और 180 दिन के अंदर-अंदर जांच को खत्म करना बताया गया है.
कानून के जानकर क्या कहते है
- कानूनों में बदलाव क्यों जरूरी था
आजादी के बाद और संविधान लागू होने के बावजूद अंग्रेजों के जमाने के दो सदी पुराने कानूनों से आपराधिक न्याय प्रणाली चल रही थी। इसे औपनिवेशिक गुलामी माना जा रहा था। आर्थिक मामलों से जुड़े कई मामलों को सरकार ने आपराधिक कानून के दायरे से बाहर रखने के लिए जन विश्वास बिल पारित किया है। ऐसे में यह बदलाव के लिए आजादी के 75वें वर्ष में बिल पेश होना अच्छा है।
- मुकदमों के बोझ से मुक्ति मिलेगी
अभी पांच करोड़ से ज्यादा केस अदालतों में लंबित हैं। जिला और तालुका स्तर पर लम्बित 4.44 करोड़ में से 3.33 करोड़ केस फौजदारी या क्रिमिनल मामलों के हैं। छोटे मामलों में सामुदायिक सेवा जैसे दंड देने के नए प्रावधानों से मुकदमों की संख्या में कमी आ सकती है। - ये कानून कब और कैसे लागू होंगे
तीनों बिलों को संसद की स्थायी समिति को भेजा गया है। राजद्रोह जैसे प्रावधान की सुप्रीम कोर्ट आलोचना कर चुका है। नए कानूनों में और सख्त प्रावधान किए गए हैं। ऐसे मुद्दों पर समिति में विरोधाभास हो सकते हैं। शीत सत्र के पहले समिति की रिपोर्ट नहीं आई तो लोकसभा का कार्यकाल खत्म होने पर बिल रद्द हो जाएंगे। हालांकि, सरकार चाहेगी तो इस पर सहमति बन सकती है। - इन बदलावों पर सवाल क्यों उठे
IPC और दूसरे कानूनों की धाराओं के क्रम में बदलाव होने से वकीलों और जजों में कन्फयूजन बढ़ेगा। ऐसे में कुछ लोग प्रस्तावित कानून को पुरानी फाइल पर नया कवर बता रहे हैं। गलत मुकदमे और पुलिस ज्यादती रोकने के प्रभावी और व्यावहारिक प्रावधान नहीं हैं। मुकदमों के जल्द फैसले के लिए भी स्पष्ट रोड मैप नहीं है। नए कानून के बाद पुलिस और न्यायपालिका में और मैनपॉवर की जरूरत होगी साथ ही इन्फ्रास्ट्रक्चर बढ़ाना होगा।
राज्यों के लिए नए कानून कैसे हैं
सरकारी दावों के अनुसार बिल पेश करने से पहले व्यापक रायशुमारी की गई है। संविधान की सातवीं अनुसूची के अनुसार कानून-व्यवस्था और पुलिस राज्यों का विषय है। समान नागरिक संहिता पर विधि आयोग के माध्यम से राष्ट्रीय बहस हो रही है, इसलिए आपराधिक कानूनों में बदलाव से पहले राज्यों से परामर्श के साथ देश में सार्थक बहस जरूरी है।
सरकार की तैयारी: 4 साल की चर्चा के बाद हुए हैं ये बदलाव
सरकार की ओर से कहा गया कि 18 राज्यों, 6 केंद्र शासित प्रदेशों, सुप्रीम कोर्ट, 22 हाई कोर्ट, न्यायिक संस्थाओं, 142 सांसदों और 270 विधायकों के अलावा जनता ने भी इन विधेयकों को लेकर सुझाव दिए हैं। चार साल की चर्चा और इस दौरान 158 बैठकों के बाद सरकार ने बिल को पेश किया है। इन बदलावों के लिए पहली बैठक सितंबर 2019 में संसद भवन के पुस्तकालाय के रूम नंबर जी-74 में हुई थी। कोरोना के दौरान एक साल तक इसमें कोई प्रगति नहीं हुई थी।