आप समेत कई विपक्षी दल जाति जनगणना को लेकर बीजेपी पर निशाना साध रहे थे. वहीं दूसरी तरफ नीतीश की सरकार ने इसे पूरा करके दिखा दिया.
बिहार के नीतीश सरकार ने 2 अक्टूबर यानी गांधी जयंती के दिन जातिगत जनगणना के आंकड़े जारी कर दिए हैं. इसके साथ ही बिहार देश का पहला जातीय गणना के आंकड़े जारी करने वाला राज्य बन गया है. सर्वे के आधार पर राज्य में 13 करोड़ 7 लाख 25 हजार 310 लोग हैं. इसमें से 2,83,44,160 परिवार हैं.
इन 13 करोड़ आबादी में सबसे ज्यादा 63% ओबीसी ( 27% पिछड़ा वर्ग+ 36% अत्यंत पिछड़ा वर्ग) वर्ग की आबादी है. जिसमें से 14.26% यादव हैं और 3.65% ब्राह्मण और राजपूत (ठाकुर) 3.45% हैं.
इन जातियों में सबसे कम संख्या कायस्थों की है. सर्वे के अनुसार प्रदेश में कायस्थों की आबादी केवल 0.60% है. इसके बाद एससी वर्ग की 19 प्रतिशत आबादी है.
कितने हिंदू-मुसलमान?
सर्वे के आंकड़े के साथ ही बिहार सरकार के प्रभारी मुख्य सचिव विवेक कुमार सिंह ने जातीय गणना पर एक किताब भी जारी किया है. इस किताब में किस समुदाय की कितनी आबादी है इसे लेकर विस्तार में जानकारी दी गई है.
इसी किताब में बताया गया कि बिहार में सबसे ज्यादा संख्या हिंदुओं की हैं. राज्य में लगभग 82% हिंदू हैं. यानी कुल आबादी के 107192958 लोगों ने अपने आप को हिंदू बताया है.
जबकि 23149925 लोगों ने अपने आप को मुसलमान बताया है. प्रदेश में 2011 से 2022, यानी 12 सालों के बीच हिंदुओं की आबादी कम हुई है. साल 2011 की जनगणना में राज्य में हिंदू आबादी 82.7% और मुस्लिम आबादी 16.9% थी.
इसके बाद बौद्ध 0.08 प्रतिशत, ईसाई 0.05 प्रतिशत, जैन 0.009 प्रतिशत हैं. इसके अलावा 2146 लोग ऐसे भी हैं जो खुद को किसी भी धर्म को नहीं मानते हैं.
कैसे किया गया जातिगत सर्वे?
18 फरवरी 2019 को ही बिहार विधानमंडल ने राज्य में जाति आधारित गणना (सर्वे) कराने का प्रस्ताव पारित किया था. प्रस्ताव के पारित किए जाने के बाद 2 जून 2022 को बिहार मंत्री परिषद ने जाति आधारित जनगणना कराने का फ़ैसला किया.
ये जनगणना दो चरणों में होनी थी. पहले चरण में गणना मकान के जरिए की जानी थी. जिसके तहत 7 जनवरी से 31 जनवरी 2023 राज्य के सभी जिलों के मकानों का नंबरीकरण किया गया और एक तैयार की गई.
इसके बाद आती है दूसरे चरण की बारी. 15 अप्रैल 2023 से जनगणना के इस चरण में बिहार में रहने वाले सभी व्यक्तियों की गणना का काम शुरू किया गया. जिसमें जिला स्तर के पदाधिकारियों को अलग-अलग जिम्मेदारियां सौंपी गई.
गणना का काम खत्म होने के बाद 5 अगस्त 2023 को सारे आंकड़े बनाकर मोबाइल ऐप के जरिए उसे जमा कर दिए गए.
कब उठी जनगणना कराने की मांग?
अगले साल यानी 2024 में लोकसभा चुनाव होने वाले हैं. इस चुनाव से पहले जातीय जनगणना का मुद्दा काफी चर्चा में भी रहा है. सबसे पहले 16 अप्रैल को खडगे ने चिट्ठी लिखकर केंद्र सरकार से जनगणना की मांग की थी.
कांग्रेस की इस मांग के समर्थन में आप, डीएमके एनसीपी समेत कई विपक्षी पार्टियां आ गई और धीरे धीरे ये जातीय जनगणना का ये मामला बीजेपी को घेरने के लिए विपक्षी पार्टियां का बड़ा मुद्दा बन गया. यहां तक की 6 सितंबर को सोनिया गांधी ने चिट्ठी लिखकर विशेष सत्र में जातिगत जनगणना पर चर्चा करने की मांग भी की थी.
राहुल गांधी ने भी 2011 जातिगत जनगणना के आंकड़ों को सार्वजनिक करने और पिछड़े वर्ग, दलितों और आदिवासियों को उनकी जनसंख्या के हिसाब से आरक्षण देने की मांग कई बार की है.
क्या लोकसभा चुनाव पर असर?
पटना यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर विकास गुप्ता ने एबीपी को बताया कि, ‘जातीय जनगणना का तार आरक्षण और ओबीसी वोट बैंक से जुड़ा हुआ है. विपक्षी पार्टियां चाहती है कि जिसकी जितनी संख्या है उसको उतनी हिस्सेदारी दी जानी चाहिए. विपक्षी पार्टियों की मांग है कि आरक्षण की सीमा जातीय जनगणना के हिसाब से तय होने चाहिए और आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत से ज्यादा बढ़ाई जानी चाहिए.
इस लड़ाई में विपक्ष के निशाने पर ओबीसी वोट बैंक है. आसान भाषा में समझे तो हर जनगणना में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के आंकड़े दिए जाते हैं. ऐसे में अगर देश में ओबीसी की जनसंख्या ज्यादा सामने आई तो विपक्ष ओबीसी आरक्षण को मौजूदा 27 फीसदी से बढ़ाने की मांग करेंगे.
सीएसडीएस लोकनीति की एक सर्वे के अनुसार ओबीसी वोट बैंक मजबूती से बीजेपी के साथ जुड़ा हुआ है. साल 2014 में बीजेपी को 34 तो कांग्रेस को 15 फीसदी ओबीसी मतदाताओं का वोट मिला था. वहीं साल 2019 लोकसभा चुनाव में बीजेपी को 44 प्रतिशत और कांग्रेस को 15 फीसदी ओबीसी वोट मिला था.
हिंदी हार्टलैंड में जहां ओबीसी वोटर्स सबसे अधिक प्रभावी हैं, वहां लोकसभा की 225 सीटें हैं. बीजेपी और उसके गठबंधन को 2019 में इनमें से 203 सीटों पर जीत मिली थी. सपा-बसपा को 15 और बाकी 7 सीटें कांग्रेस को मिली थी.
विकास गुप्ता कहते हैं- बिहार में जारी किए जाति जनगणना के सर्वे के जरिए विपक्ष इन्हीं ओबीसी वोटरों को अपनी तरफ करना चाहती है. क्योंकि विपक्ष के तर्क के मुताबिक बिहार में जनगणना के बाद 27% पिछड़ा वर्ग और 36% अत्यंत पिछड़ा वर्ग को मिलाकर ओबीसी को कुल 63 प्रतिशत आरक्षण मिलना चाहिए.
गुप्ता के मुताबिक ऐसे में अब लोकसभा चुनाव से पहले देश की राजनीति में आरक्षण का मुद्दा एक बार फिर चर्चा में आएगा. विपक्ष कहेंगे कि बिहार में आरक्षण देना है तो संख्या के आधार पर दिया जाना चाहिए.
वहीं पत्रकार अभय दुबे ने एबीपी से बातचीत करते हुए कहा कि इस सर्वे का असर लोकसभा चुनाव पर पड़ते हुए मुझे तो साफ नजर आ रहा है. दरअसल पिछले दो लोकसभा चुनावों में बीजेपी ने ये कहना शुरू कर दिया था कि देश की जनता जाति के पार जाकर मोदी जी और बीजेपी को सपोर्ट कर रही है. इसलिए बीजेपी जातिगत जनगणना नहीं करवाना चाहती थी. अब जैसे ही बिहार में इस जनगणना के आंकड़े आए हैं आप महसूस कर सकते हैं कि भारतीय जनता पार्टी की दिक्कत कितनी बढ़ जाएगी. जितनी जितनी अन्य प्रदेशों में जनगणना होगी, बीजेपी की दिक्कतें भी उतनी ही बढ़ती जाएगी.
दुबे आगे कहते हैं- बिहार को ही ले लीजिए इस सर्वे के बाद राज्य में किस जाति की कितनी संख्या है ये निकलकर सामने आ गया है. बिहार के संदर्भ में भारतीय जनता पार्टी को ब्राह्मण-बनिया पार्टी कहा जाता है. वहां पर ओबीसी और कमजोर जातियां दूसरे दलों के मुताबिक भारतीय जनता पार्टी के साथ अपेक्षाकृत कम हैं और इस जनगणना के बाद भाजपा को और भी मुश्किल होगी.
नीतीश सरकार के जनगणना का रिपोर्ट मास्टरस्ट्रोक जैसा
प्रोफेसर विकास गुप्ता बिहार के जातिगत सर्वे को नीती के मास्टरस्ट्रोक के रूप में भी देख रहे हैं. वे कहते हैं- कांग्रेस सरकार लगातार इस जातीय गणना के मुद्दे को उठाकर बीजेपी को घेरने की कोशिश करती रही है. वहीं दूसरी तरफ भारतीय जनता पार्टी भी इस मुद्दे को नजर अंदाज करती रही है. ऐसे में बिहार में नीतीश सरकार द्वारा जाति जनगणना का रिपोर्ट जारी कर दिया जाना सीएम नीतीश कुमार के लिए मास्टर स्ट्रोक जैसा है.
उनके मुताबिक 28 विपक्षी दलों के गठबंधन INDIA में भी नीतीश कुमार ने साबित कर दिया कि जहां एक तरफ अन्य दल जाति जनगणना को लेकर एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप करते रहे वहीं दूसरी तरफ नीतीश की सरकार ने इसे पूरा करके दिखा दिया.
आंकड़े जारी होने के बाद किसने क्या कहा?
राहुल गांधी: बिहार में जाति आधारित जनगणना के आंकड़े जारी होने के बाद कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने सोशल प्लेटफार्म एक्स पर लिखा है, “बिहार की जातिगत जनगणना से पता चला है कि वहां ओबीसी + एससी + एसटी 84% हैं. केंद्र सरकार के 90 सचिवों में सिर्फ़ 3 ओबीसी हैं, जो भारत का मात्र 5% बजट संभालते हैं. इसलिए, भारत के जातिगत आंकड़े जानना ज़रूरी है. जितनी आबादी, उतना हक़ ये हमारा प्रण है.”
नीतीश कुमार: सीएम नीतीश कुमार ने सोशल प्लेटफार्म एक्स पर लिखा, ‘आज गांधी जयंती के शुभ अवसर पर बिहार में कराई गई जाति आधारित गणना के आंकड़े प्रकाशित कर दिए गए हैं. जाति आधारित गणना के कार्य में लगी हुई पूरी टीम को बहुत-बहुत बधाई! जाति आधारित गणना के लिए सर्वसम्मति से विधानमंडल में प्रस्ताव पारित किया गया था. बिहार विधानसभा के सभी 9 दलों की सहमति से निर्णय लिया गया था कि राज्य सरकार अपने संसाधनों से जाति आधारित गणना कराएगी. 02-06-2022 को मंत्रिपरिषद से इसकी स्वीकृति दी गई थी. इसके आधार पर राज्य सरकार ने अपने संसाधनों से जाति आधारित गणना कराई है.
लालू प्रसाद यादव: लालू प्रसाद यादव ने जातिगत जनगणना के आंकड़े पर कहा कि, ‘प्रदेश में वंचितों, उपेक्षितों और गरीबों के समुचित विकास और प्रगति के लिए समग्र योजना बनाने और आबादी के अनुपात में वंचित समूहों को प्रतिनिधित्व देने में देश के लिए एक उदाहरण स्थापित करेंगे.
संजय सिंह: आम आदमी पार्टी के नेता संजय सिंह ने इस मौके पर कहा कि ये जनगणना पूरे देश में होनी चाहिए लेकिन भारतीय जनता पार्टी अपने मूल सिद्धांतों और विचारों में पिछड़ों, दलितों, शोषितों, वंचितों की विरोधी है इसलिए ये इससे भाग रहे हैं. उन्होंने आगे कहा कि ओबीसी, एससी-एसटी और अल्पसंख्यक समुदाय के साथ आप न्याय करना चाहते हैं तो पूरे देश में इनकी संख्या कितनी है यह जानना बहुत जरूरी है. मोदी जी, इससे क्यों भाग रहे हैं?
तेजस्वी यादव: बिहार के उपमुख्यमंत्री और आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने कहा है, “हम शुरू से इसकी मांग कर रहे थे और आज ऐतिहासिक दिन में यह जारी किया गया है. इस काम में बीजेपी ने बहुत अड़चन डालने की कोशिश की है. हमारी मांग को प्रधानमंत्री जी ने नकारा. लोकसभा में नकारा, राज्यसभा में नकारा गया.”
उनका कहना है कि जनगणना के आंकड़ों से हर राज्य के हर वर्ग के लोगों की आर्थिक स्थिति का भी पता चला है. अब आर्थिक न्याय का दौर है और सरकार की यह कोशिश होगी कि आंकड़ों के आधार पर विशेष योजना बनाकर लोगों को लाभ पहुंचाया जाए.
केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह: वहीं केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने कहा कि नीतीश कुमार को 15 साल और लालू यादव को अपने 18 साल के कार्यकाल का रिपोर्ट कार्ड देना चाहिए था कि उन्होंने अपने कार्यकाल में गरीबों का क्या उद्धार किया, कितने लोगों को नौकरियां दीं. जाति जनगणना का ये आंकड़ा भ्रम के अलावा कुछ नहीं है.