रोहतास : श्राद्ध के दौरान कुल देवताओं, पितरों और पूर्वजों के प्रति श्रद्धा प्रकट की जाती है. वर्ष में पंद्रह दिन की विशेष अवधि में श्राद्ध कर्म किए जाते हैं और इसकी शुरुवात हो चुकी है. श्राद्ध पक्ष को पितृपक्ष और महालय के नाम से भी जाना जाता है. ऐसी मान्यता है कि श्राद्ध पक्ष के दौरान हमारे पूर्वज पृथ्वी पर सूक्ष्म रूप में आते हैं और उनके नाम से किए जाने वाले तर्पण को स्वीकार करते हैं. इससे पितरों की आत्मा को शांति मिलती है और घर में सुख-शांति बनी रहती है.
कब होता है पितृपक्ष
पितृपक्ष भाद्रपद की पूर्णिमा से ही शुरु होकर आश्विन मास की अमावस्या तक चलते हैं. आश्विन माह के कृष्ण पक्ष को ही पितृपक्ष कहा जाता है. भाद्रपद पूर्णिमा को उनका श्राद्ध किया जाता है जिनका निधन वर्ष की किसी भी पूर्णिमा को हुआ हो. शास्त्रों में भाद्रपद पूर्णिमा के दिन देह त्यागने वालों का तर्पण आश्विन अमावस्या को करने की सलाह दी जाती है. वहीं वर्ष के किसी भी पक्ष में जिस तिथि को घर के पूर्वज का देहांत हुआ हो उनका श्राद्ध कर्म पितृपक्ष की उसी तिथि को करना चाहिए.

कहाँ देते हैं तर्पण
पितृपक्ष शुरू हो गया है. इस पखवाड़े लोग अपने मृत पितरों को जल अर्पित कर तर्पण करते हैं. हिंदू धर्म में मान्यता है कि ऐसा करने से परलोकगामी पितरों की आत्मा संतुष्ट होती है और वे अपने वंशजों पर अपना आशीर्वाद बनाए रखते हैं. लोग घरों में तालाबों में नदियों में कहीं भी पितरों को जल का तर्पण कर सकते हैं. रोहतास जिला के विभिन्न जल सरोवरो में कई लोगों ने पितृपक्ष शुरू होते ही अपने पूवर्जों को याद कर जल, तिल, चावल आदि अर्पण किया. सासाराम के मोकर पुल नहर कुराईच लालगंज नहर में पहुंचे लोगों ने अहले सुबह डुबकी लगाई और तर्पण किया. लोगों ने अपने पूर्वजों को याद करते हुए मंत्रोचार के बीच जल अपर्ण किए. पंडित मधुरेश पाण्डेय ने बताया कि पितृपक्ष के दौरान किए गए तर्पण से पूर्वजों का आशीर्वाद मिलता है.घर में हमेशा सुख-शांति बनी रहती है.